हाय दोस्तो, मेरा नाम गीता है। मैं आपको ट्रेन में सेक्स अनुभव सुनाने जा रही हूँ। अब मेरी कहानी को आप सच मानें या झूठ … यह आप पर निर्भर करता है। क्योंकि अगर मैं यह कहूँ कि यह कहानी सच्ची है तो आप नहीं मानेंगे। तो इस चक्कर में मत पड़िये कि मेरी कहानी सच्ची है या झूठी … आप बस कहानी का मजा लीजिये। तो सबसे पहले मैं अपना और अपने परिवार का परिचय करा दूं। शुरूआत मैं अपनी ससुराल से करती हूं।
मेरे ससुराल में कुल चार लोग हैं:
मैं गीता, उम्र 24 साल
मेरे पति रोहित, उम्र 27 वर्ष
मेरी ननद पायल, उम्र 21 साल
और मेरे ससुर- उम्र- 50 साल।
मेरी सास की मौत मेरी शादी से पहले ही हो चुकी थी। ये तो रहा मेरे ससुराल का परिचय। अब मैं आपको अपने घर यानि अपने घर का परिचय दे दूँ। वह इसलिए कि मैं अपनी कहानी अपने घर से ही शुरू करूंगी क्योंकि अपनी पहली चुदाई का अनुभव मैंने वहीं लिया था। मैं एक छोटे से शहर की एक बेहद मध्यम वर्गीय परिवार से हूं। मेरे घर में मुझे छोड़ कर कुल तीन लोग ही हैं।
मेरे पापा, उम्र 49 वर्ष
मेरी मम्मी, उम्र 47 वर्ष
और मेरा छोटा भाई सोनू, उम्र 23 वर्ष
इसके अलावा कहानी में और भी किरदार आएंगे जिनका मैं आपसे समय-समय पर परिचय कराती रहूंगी। तो चलिए अब शुरू करते हैं कहानी का सफर जिसकी शुरुआत मैं अपने घर से करूंगी। जब मैं 19 साल की थी, 12वीं में थी, तभी मैंने पहली चुदाई का पहला आनंद उठाया था। और मेरी पहली चुदाई का सौभाग्य मिला था मेरे छोटे भाई सोनू को। सबसे पहले मैं अपने बारे में आप लोगों को बता दूं। मैं एक गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थी। मैं तब तक चूत और लंड के रिश्ते के बारे में मुझे अच्छी तरह जान चुकी थी।
जवानी का रंग भी मेरे ऊपर तेजी से चढ़ रहा था। स्कूल जाते वक्त जब मैं स्कर्ट पहन कर घर से निकलती थी तो अक्सर आने जाने वालों की निगाहें मेरे गोरी-गोरी जांघों पर ठहर जाती थी। छोटा शहर होने की वजह से स्कूल के लिए कोई बस नहीं थी इसलिए मैं रिक्शे से स्कूल जाती थी। जब मैं रिक्शे पर बैठती थी तो जानबूझ कर कभी-कभी अपनी टांगों को थोड़ा सा फैला देती थी जिससे मेरी गोरी-गोरी मांसल जांघें दिखाई देने लगती थी। जिसके बाद सामने से आने वाले या खड़े हुए लोग लार टपकते हुए मेरी जांघों को घूरते रहते थे। जिसमें मुझे बड़ा मजा आता था।
मेरी एक बहुत अच्छी सहेली ज्योति थी जो हमारे पड़ोस में रहती थी. हम एक स्कूल और एक ही क्लास में पढ़ती थी। मैं उसके घर जाया करती थी. उसके घर ज्यादा जाने की एक वजह यह भी थी कि उसके पास लैपटॉप था जिसमें हम दोनों अक्सर पॉर्न मूवी देखती थी। मूवी देखते समय हम एक दूसरे की छोटी-छोटी चूचियां जो धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी, भी हंसी मजाक में दबा देती थी। इतना ही नहीं, हम कभी-कभी एक दूसरे को अपनी चूत दिखाती थी और सहलाती भी थी। इसमें बहुत मजा आता था।
घर में मेरे छोटे भाई सोनू से भी मेरी बहुत अच्छी दोस्ती थी। चूंकि वह मुझसे सिर्फ डेढ़ साल ही छोटा था तो हम दोनों दोस्तों की तरह रहते थे और एक दूसरे से हंसी मज़ाक भी खूब करते थे। हम दोनों अपने हर बात एक-दूसरे से साझा करते हैं जिसमें स्कूल, दोस्त और अपनी कॉलोनी के लड़के लड़कियों की बातें भी शामिल रहती थीं जैसे कौन लड़का किस लड़की पर लाइन मार रहा है या कौन लड़की किसके साथ पटी है।
हम एक-दूसरे को लेकर भी अक्सर मजाक करते थे। जैसे वह मुझसे पूछता- कॉलोनी में कौन-कौन लड़के तुझे लाइन मारते हैं. तो मैंने कहा था- तू कौन-कौन सी लड़कियों को लाइन मारता है? उन लड़कियों में मेरी दोस्त ज्योति भी शामिल थी। सोनू अक्सर मुझसे पूछता था- दीदी, तुम इतनी देर-देर तक ज्योति दीदी से उसके घर जाकर क्या बात करती हो? मैं बात को हंसी में टाल दिया करती थी और कह देती थी- हम दोनों साथ पढ़ती हैं और मजे भी करती हैं। तो वह पूछता- पढ़ाई के साथ कौन से मजे किये जाते हैं, मुझे भी बताओ। मैं भी हंस कर जवाब देती- कुछ भी करती हूंगी तो तुझे क्या!
वह कहता- ज्योति दीदी (ज्योति मेरी दोस्त थी इसलिए सोनू उसे भी दीदी कहता था) से कह दो कि कभी मुझे भी बुला लिया करे, साथ में मजे करेंगे। तो मैं कहती- तू उसे दीदी भी कहता है और लाइन भी मारता है।इस पर सोनू हंसते हुए कहता- अरे वो तो दीदी तुम्हारी वजह से कहता हूं. नहीं तो मैं कौन सा उसे अपनी बहन मानता हूं. तुमसे इतनी बार कहा है कि ज्योति से मेरी बात करो. तुम अपने भाई की इतनी सी मदद भी नहीं कर पाती। इस पर मैं कहती- कि तुम खुद ही पटा लो।
मैं कहती- तुम कौन सा कोई लड़का मुझे पटा कर देते हो जो मैं तुम्हें ज्योति को पटा कर दूं। तो वह कहता है- तू क्या करेगी लड़का पटा कर?
मैं कहती- जो तू करेगा लड़की पटा कर! फ़िर हम हंस देते थे। हालांकि हम दोनों ने कभी सेक्स किया या इस तरह की कोई बात एक दूसरे से नहीं करते थे. लेकिन अपने दोस्तों को लेकर इस तरह के मजाक एक दूसरे से कर लेते थे। वैसे मैं गौर करती थी कि सोनू अक्सर निगाह बचा कर मेरी चूचियों पर निगाह मार लेता था. जैसा ही मैं देखती, वह इधर उधर देखने लगता था. जिस पर मैं मन ही मन हंस पड़ती थी।
मैंने यह भी महसूस किया था कि वह किसी ना किसी बहाने से अपने शरीर को मुझसे टच करने की कोशिश भी करता था। मैं भी जानबूझ कर उसके सामने ऐसी खड़ी होती थी कि मेरी दोनों गोल मटोल चूचियां टी-शर्ट में उभर आती थीं। हम जब बालकनी में बात करते थे तो मैं भी जानबूझकर बात करते-करते कभी-कभी अपने शरीर को सोनू से टच करा देती थी जिसमें मुझे बड़ा मजा आता था।
मुझे लगता था कि सोनू भी इस बात को समझता था, तभी वह कभी-कभी घर में अगल बगल से गुज़रते हुए जानबूझकर अपना हाथ मेरी गांड से टकरा देता था। मैं भी कुछ नहीं कहती थी जिससे उसका हौसला और बढ़ जाता था। बात उन दिनों की है 12वीं में पढ़ती थी। हमारे छोटे मामा की शादी पड़ी थी। शादी दिसंबर के महीने में थी.
हमारा ननिहाल गांव में था और शादी भी वहीं से होनी थी।
दिसंबर में परीक्षा होने की वजह से शादी की तारीख ऐसी रखी गई थी कि हमारी परीक्षा खत्म हो जाए ताकि मैं और सोनू भी शादी में जा सकें।
तो जिस दिन हमारी परीक्षा ख़त्म होनी थी, शादी उसके ही अगले दिन थी।
जिस वजह से मैं और सोनू तो पहले नहीं जा सके मगर मम्मी कुछ दिन पहले ही चली गई।
पापा को ऑफिस से ज्यादा छुट्टी नहीं मिली थी तो उन्हें शादी के दिन ही पहुंचाना था।
खैर हमारा एग्जाम ख़त्म होते ही मैं और सोनू उसी दिन शाम को अपने ननिहाल के लिए जाने लगे।
जैसा मैंने बताया था कि हमारा ननिहाल शहर से दूर गांव में था तो हमें ट्रेन से जाना था।
मैं और सोनू तैयार होकर रेलवे स्टेशन आ गए।
वहां से शाम 6 बजे ट्रेन थी।
पापा हमें स्टेशन हमें स्टेशन पर छोड़ने आये थे।
हमारे गाँव के पास ज्यादा गाड़ियाँ नहीं रुकती थी।
बस एक पैसेंजर ट्रेन रुकती थी।
खैर ट्रेन आ गयी.
लेकिन शादी और छुट्टियों की वजह से ट्रेन में भीड़ बहुत थी।
मगर एक डिब्बे में हम दोनों चढ़ गए।
डिब्बे में भीड़ होने की वजह से बैठने की कोई जगह तो थी नहीं, इसलिए मैं और सोनू दरवाजे के पास ही एक जगह खड़े हो गए.
हमारे पास केवल एक बैग था।
जिस दरवाजे के पास हम खड़े थे, वहां किसी ने अपना बड़ा सा लोहे का एक बॉक्स रखा था जिस पर दो बड़ी-बड़ी अटैची और बैग एक के ऊपर एक रखे थे। जिस वजह से उसने दूसरी तरफ का दरवाजा बंद कर दिया था।
हमने भी उसी के ऊपर अपना बैग रखा और खड़े हो गए।
बॉक्स के इस तरफ बहुत ज्यादा भीड़ होने की वजह सोनू ने मुझे कहा- दीदी, तुम बॉक्स के दूसरी तरफ दरवाजे के पास चली जाओ।
मैंने भी देखा तो बॉक्स और दरवाजे के बीच खड़े होने लायक जगह थी तो मैं जाकर दरवाजे की तरफ खड़ी हो गई और आराम से बैग का सहारा लेकर खड़ी हो गई।
चूंकि दूसरा दरवाजा बंद था तो मैं आराम से वहां खड़ी हो गयी।
जिस स्टेशन पर उतरना था, वह हमारे शहर से करीब 70 किलोमीटर दूर एक छोटा सा स्टेशन था।
पैसेंजर ट्रेन होने की वजह से करीब दो घंटे लग जाते थे और वहां 7.30 बजे तक ट्रेन पहुंच जाती थी।
फिर वहां से हमारे मामा का गांव चार किलोमीटर दूर था और वहां से गांव तक जाने के लिए किसी को हमें लेने के लिए स्टेशन तक आना पड़ता था।
स्टेशन एकदम वीरान जगह था, वहां आस-पास कोई भी बस्ती नहीं थी और स्टेशन पर इक्का-दुक्का ही कोई उतरता था इसलिए वहां कोई गाड़ी भी नहीं मिलती थी।
इसलिए पापा ने मां को फोन कर बता दिया कि स्टेशन पर कोई हम लोगों को लेने आ जाए।
पापा ने हम दोनों को कहा- जब स्टेशन आने में आधा घंटा रह जाए तो मां को फोन कर देना. कोई ना कोई तुम लोगों को लेने चला जाएगा।
खैर थोड़ी देर में ट्रेन चल दी।
ट्रेन चलने के बाद सब अपनी-अपनी जगह आराम से एडजस्ट हो गए।
ट्रेन चले करीब आधा घण्टा हो गया.
अँधेरा गहरा हो चुका था।
जहां हम खड़े थे, वहां एक छोटा सा बल्ब था जिसमें बस एक दूसरे को देख पाने भर की रोशनी आ रही थी।
कोहरा होने की वजह से ट्रेन की स्पीड अब धीमी हो गई थी।
ट्रेन में हवा लगने की वजह से ठंड ज्यादा लग रही थी इसलिए जो जहां खड़ा था वहां धीरे-धीरे जगह बना कर नीचे बैठ गया था।
ठंडी हवा की वजह से सबने दूसरा दरवाजा भी बंद कर दिया था और सब उंघ रहे थे सिर्फ मैं और सोनू खड़े थे।
सोनू बॉक्स के दूसरे साइड में टॉयलेट के पास खड़ा था।
थोड़ी देर बाद सोनू ने मुझसे कहा- दीदी, मैं तुम्हारी तरफ आ जाऊं?
जहां मैं खड़ी थी वहां एक आदमी और खड़ा हो सकता था।
मैंने कहा- अगर वहां दिक्कत है तो इधर आ जाओ।
तो सोनू बॉक्स के ऊपर चढ़ के मेरे पास आकर खड़ा हो गया।
मगर जगह थोड़ी होने की वजह से हम एक दूसरे से सट कर खड़े थे।
धीरे-धीरे सोनू मेरे बगल से हटकर मेरे एकदम के पीछे आ गया।
थोड़ी देर तक तो सब ठीक रहा।
मगर थोड़ी देर बाद मैंने महसूस किया कि सोनू ट्रेन के हिलने का बहाना लेकर मुझसे बार-बार कुछ ज्यादा ही चिपक जा रहा था।
मेरे पीछे खड़ा होने की वजह से वह मेरी गांड से चिपका हुआ था।
अब मैं समझ गई कि सोनू मेरे पास आकर क्यों खड़ा हुआ है।
मैंने भी कुछ नहीं कहा और आराम से ऐसी खड़ी रही जैसे मुझे कुछ पता नहीं चल रहा है।
धीरे-धीरे मेरे कुछ ना बोलने से सोनू की हिम्मत बढ़ती जा रही थी और अब उसने अपने आप को पूरी तरह मेरी गांड से चिपका दिया था।
मैं उसके लंड का उभार अपनी गांड पर हल्का-हल्का महसूस कर रही थी।
मैंने कुर्ती और लेगिंग पहन रखी थी और ऊपर एक जैकेट डाली हुई थी।
सोनू ने स्पोर्ट्स वाली लोअर-फुल टी-शर्ट और ऊपर से जैकेट पहना हुआ था।
सोनू का दबाव मेरी गांड पर बढ़ता रहा.
लेकिन अब मैंने महसूस कर लिया था कि सोनू का लंड खड़ा हो गया है।
अपनी गांड पर अपने भाई के लंड को महसूस कर मुझे भी अलग फीलिंग हो रही थी … सच कहूँ तो अजीब सा मज़ा आ रहा था।
वहां बैठे सब दुबक कर बैठे ऊंघ रहे थे।
ट्रेन की खिड़की से ठंडी-ठंडी हवा आ रही थी।
और गांड पर लंड की हल्की-हल्की चुभन से माहौल सेक्सी हो रहा था।
अब मुझे भी मजा आने लगा था.
मैंने भी अपनी गांड से सोनू के लंड पर हल्का सा दबाव बनाया।
अब सोनू भी समझ चुका है कि मुझे उसकी हरकतों का पता चल चुका है और मेरी मौन सहमति उसे मिल चुकी है।
हम दरवाजे के पास खड़े थे हमारे सामने एक बड़ा बॉक्स उसके ऊपर दो बड़े-बड़े बैग फिर उसके ऊपर हमारा बैग होने की वजह से हम दोनों के सीने से नीचे का हिसा छिपा हुआ था। जिसका फ़ायदा हमें मिल रहा था और हमारी हरकतों को कोई देख नहीं पा रहा था।
ट्रेन के हिलने के साथ ही सोनू अब खुल कर अपना लण्ड लोअर के अंदर से मेरी गांड पर रगड़ रहा था।
मैं भी हल्के-हल्के अपनी गांड को हिला कर मजे लेने लगी।
थोड़ी देर तो ऐसा ही चलता रहा।
फिर सोनू थोड़ा पीछे हुआ और अपना लंड मेरी गांड से हटा लिया.
मुझे कुछ समझ नहीं आया.
तभी दोबारा वह मेरी गांड से चिपक गया।
लेगिंग के ऊपर से मुझे ऐसा लगा जैसे कोई कड़ी देख चीज़ मेरी गांड से रगड़ी जा रही हो।
मैं समझ गई कि सोनू ने अपना लण्ड लोअर से बाहर निकाल लिया है।
यह समझते ही कि सोनू लण्ड बाहर निकाल कर रगड़ रहा है, मेरी चूत पनिया गयी।
अब मैं एकदम चुदासी होती जा रही थी और खुलकर मजे लेने के मूड में आ गयी थी।
मैं अपने सामने रखे बैग का सहारा लेकर हल्का सा आगे झुक गई और अपनी गांड को थोड़ा सा पीछे कर दिया।
अब मेरी गांड और सोनू लंड के बीच में सिर्फ मेरी लेगिंग थी।
सोनू ने धीरे से अपने हाथ से मेरी कमर को पकड़ लिया और लेगिंग के ऊपर से ही अपने लंड को मेरी गांड से सटा कर हिलाने लगा।
मैं भी मस्त हो कर हल्के हल्के अपनी गांड हिला रही थी।
उधर मेरी चूत एक दम गीली हो चुकी थी।
सोनू समझ रहा था कि मैं भी अब खुल कर मजे ले रही हूं क्योंकि उसके अन्दर का डर भी निकल चुका है और वह भी खुल कर मजे ले रहा था।
सोनू अचानक धीमा हुआ, उसने अपने दोनों हाथ जो मेरी कमर पर रखे धीरे-धीरे आगे की तरफ सरकाया।
पहले तो मैं समझ नहीं पाई मगर तभी उसके इरादे सोच कर मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
दरअसल सोनू ने अपना हाथ आगे लाकर मेरी लेगिंग पर रख दिया।
पहले तो मैंने सोचा कि उसका हाथ पकड़ कर उसे रोक दूं … मगर मैं इतनी मदहोश हो चुकी थी कि मना करने की स्थिति में नहीं थी।
सच कहूं तो मेरा तो मन ये कर रहा था कि मैं खुद ही अपनी लेगिंग उतार कर अपनी गांड को नंगी कर दूं।
तभी सोनू ने अपना हाथ मेरी कमर पर रखा और दोनों तरफ से उसके हाथों की उंगलियां मेरी लेगिंग के अंदर चली गईं।
मैं समझ गई कि सोनू मेरी लेगिंग नीचे खिसकाने वाला है।
मेरे दिल की धड़कन एकदम से बढ़ गयी।
फिर वही हुआ जो मैंने सोचा था।
सोनू थोड़ा सा पीछे हटा और धीरे-धीरे मेरी लेगिंग और पैंटी डोनो को एक साथ नीचे खिसकाने लगा।
लेगिंग टाइट होने की वजह से इस्तेमाल थोड़ा जोर लगाना पड़ा और आखिर उसने लेगिंग और पैंटी को खींच कर घुटनों तक कर दिया।
अब मेरी गांड एकदम नंगी हो चुकी थी।
सोनू ने अपने हाथ से मेरी नंगी गांड के दरार में हल्का फैलाया और अपने लंड को दरार के बीच में डाल दिया।
जैसे ही सोनू का गर्म-गर्म लंड मेरी गांड से टकराया मेरे शरीर में हल्की सी सिहरन दौड़ गई।
सोनू ने दोनों हाथों से मेरी कमर को पकड़ा और झुक कर हल्का-हल्का अपने कमर को हिलाने लगा उसका लंड मेरी गांड से होते हुए मेरी पनिया चुकी चूत से टकराने लगा।
मैं तो जैसे सातवें आसमान में थी।
हालांकि मैं कई बार बैगन और मूली अपनी चूत में डाल कर मुठ मार चुकी थी मगर आज पहली बार कोई लंड मेरी चूत से टकरा रहा था।
और वो भी मेरे सगे भाई का लंड।
मैं भी आगे झुक कर अपना सर बैग पर रख दिया और अपनी गांड को उठा कर हिलाने लगी।
अब सोनू ने मेरी कमर को पकड़ कर अपने लंड को मेरी चूत से रगड़ना शुरू कर दिया था और तेजी से अपने कमर को हिला रहा था।
मैं भी अपनी गांड को तेजी से हिला-हिला कर उसका साथ दे रही थी।
मुझे लगा जैसे मेरी नसें फटने जा रही हैं।
मैं और तेजी से अपनी गांड हिलाने लगी.
वहीं सोनू ने भी अचानक अपनी स्पीड बढ़ा दी और मेरी गांड को अपनी कमर से पूरा चिपका लिया.
वह तेज झटके लेने लगा तभी उसका गर्म-गर्म वीर्य मेरी चूत और जांघों पर निकलने लगा।
मुझे भी लगा जैसे मेरा शरीर अकड़ गया है और मेरी नसें फट गई हैं.
और मेरी चूत ने भी उसका वक्त पानी छोड़ दिया।
हम दोनों साथ झड़ गये।
सोनू अपना सर मेरी पीठ पर रख तेजी से सांस ले रहा था.
मैं भी निढाल होकर बैग पर अपने सर रख कर अपनी सांसों को काबू में करने की कोशिश कर रही थी।
उधर सोनू के लंड का रस और मेरी चूत का रस दोनों मेरी जाँघों पर बह रहे थे।
करीब पांच मिनट बाद सोनू खड़ा हुआ और उसने अपने रुमाल से धीरे से मेरी चूत और जांघों को साफ किया। ट्रेन में सेक्स के बाद मैं भी सीधी खड़ी हो गई और धीरे से अपनी पैंटी और लेगिंग को ऊपर कर लिया। हमने टाइम देखा तो 8.00 बजे थे। ट्रेन अभी भी चल रही थी. मगर कोहरे की वजह से ट्रेन लेट हो चुकी थी। हमने वहां बैठे बाकी लोगों पर नज़र दौड़ाई तो देखा सब सो रहे थे। फिर करीब 15 मिनट तक मैं और सोनू एकदम चुप रहे और आपस में कोई बात नहीं। थोड़ी देर बाद एक स्टेशन आया तब जाकर सोनू ने मुझसे कहा- मैं देख कर आता हूं कि कौन सा स्टेशन है। मैंने कहा- ठीक है. सोनू ने बॉक्स को पार कर सामने वाले दरवाजे को खोल कर देखा। फिर दरवाजा बंद कर वापस आया और बोला- दीदी, हमने अगले स्टेशन पर ही उतरना है। ट्रेन भी चल दी थी. करीब 15 मिनट के बाद हमारा स्टेशन आ गया और हम वहां उतर गए।
रात के 8.30 बज गए।
प्लेटफार्म पर एकदम घुप्प अँधेरा था।
कोहरे की वजह से 5-10 फुट की दूरी से ज्यादा कुछ दिख नहीं जा रहा था।
स्टेशन के नाम पर थोड़ी दूर एक कमरा दिखाई दे रहा था जो शायद ऑफिस और टिकट घर था।
वहां हल्की रोशनी हो रही थी, बाकी खुला आसमान था।
पूरे प्लेटफार्म पर लाइन से 5-6 पेड़ लगे हुए थे जिनके चारों ओर बैठने के लिए पक्का चबूतरा बना हुआ था।
इसके अलावा 3-3 लोहे की बेंच भी थी।
हम दोनों के अलावा पूरे स्टेशन पर कोई नहीं था, बस एक कुत्ता दिखाई दिया, फिर वो भी अँधेरे में कहीं गुम हो गया।
मैंने सोनू से कहा- मामा ने कहा था कि स्टेशन आने के आधे घंटे पहले बता देना, हमने तो बताया ही नहीं।
सोनू ने कहा- हमें याद ही नहीं रह रहा।
तो मैंने कमेंट करते हुए शरारत से कहा- ध्यान कहीं और था तो भूलोगे ही!
तब सोनू भी हंसते हुए बोला- तुम्हारा ध्यान कहीं और नहीं था तो तुमने फोन कर दिया होगा।
मैंने हंसते हुए कहा- अच्छा झगड़ा छोड़ो और अब फोन कर दो. और गुस्सा करें तो कह देना कि अंधेरे में पता नहीं चला और नेटवर्क भी नहीं मिल रहा था रास्ते में!
सोनू ने मामा को फोन किया.
उधर से मामा गुस्से में आ गये।
फिर उन्होने कहा- ठीक है, तब तक वहां कहीं बैठो, हम आ रहे हैं।
स्टेशन पर सोनू ने बैग उठाया और कहा- आओ ऑफिस में ही चल कर बैठते हैं, वहां तो कोई होगा ही।
फिर हम दोनों धीरे-धीरे ऑफिस की तरफ चल दिये।
वहां पहुंचे तो देखा कि ऑफिस का दरवाजा बंद था मगर कुंडी खुली हुई थी और अंदर रोशनी जल रही थी.
खुली खिड़की से हल्की रोशनी बाहर आ रही थी।
लाइट के नाम ऑफिस के बाहर एक बल्ब लटक रहा था।
कोहरे की वजह बल्ब की रोशनी दूर तक नहीं जा पा रही थी.
वहीं पास में एक बेंच बनी थी।
हमने बेंच पर अपना बैग रखा.
मगर बाहर ठंड लग रही थी तो मैंने सोनू से कहा- चल कर देखते हैं, शायद ऑफिस के अंदर कोई हो।
हम दोनों साथ आए और खिड़की से अंदर झांका तो देखा कि अंदर एक बड़ी सी मेज के पीछे एक आदमी बैठा है जिसकी उम्र करीब 55-58 साल लग रही थी।
वह कोई किताब पढ़ रहा था।
अचानक हम दोनों की निगाह मेज के नीचे चली गई तो हम दोनों ही मुस्कुरा दिए।
दरअसल उसने अपनी पैंट की ज़िप खोली हुई थी और अपना लंड हाथ में लेकर किताब पढ़ रहा था।
हम समझ गए कि वो कोई अश्लील किताब थी।
यह देख कर मैं हल्का सा शर्मा गई।
मगर मेरी निगाह उसमेज के नीचे दिख रहे नज़ारे से नहीं हट रही थी।
मैंने अभी तक सिर्फ बुक में और नेट पर ही लंड देखा था मगर आज पहली बार असली लंड आंख से देख रही थी।
हालांकी ट्रेन में अभी अपने भाई के लंड का चूत के ऊपर से ही का मजा लिया था।
मगर उसके लंड को ना देखा था और ना ही अपने हाथ से टच किया था।
सोनू ने ये देख लिया कि मेरी निगाह लंड को बड़े गौर से घूर रही है।
तब उसने मेरी गांड पर हल्के हाथ से थपकी दी और धीरे से बोला- क्या देख रही हो दीदी?
मैं एकदम से शर्मा गई और खिड़की से हटकर बेंच के पास आ गई।
सोनू भी मेरे पास आ गया और हम एक-दूसरे को देख कर हल्का सा मुस्कुरा दिये।
अब हमारे बीच की झिझक करीब-करीब खत्म हो चुकी थी इसलिए अब हम आराम से एक दूसरे से बात कर रहे हैं।
सोनू ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा- दीदी यहां बैठेंगे तो हमारी तो कुल्फी जम जाएगी।
मैंने भी हल्का सा मुस्कुरा कर कहा- तो अंदर कैसे जायें, देख नहीं रहे थे तो वह क्या कर रहा था।
तो सोनू ने आंख मारते हुए कहा- तो क्या हुआ, हम भी चल कर देखेंगे. वैसे भी तो तुम बड़े गौर से देख रही थी।
मैं हल्का सा शर्मा गई और फिर मुंह चिढ़ाते हुए कहा- मुझे नहीं जाना है, जाओ तुम्हीं देखो।
सोनू ने कहा- अरे नाराज़ मत हो दीदी. मामा को आने में अभी आधा घण्टा लगेगा, इतनी देर में तो हम जम जाएंगे। मेरा कहना मानो, अंदर चलो।
तब मैंने कहा- ठीक है. पहले तुम आगे चल कर दरवाजा खटखटा लेना, तब अंदर घुसना।
सोनू ने कहा- ठीक है!
और हम बैग उठा कर हमारी तरफ चल दिये।
सोनू ने दरवाजा खटखटाया और फिर हल्का सा धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया।
हमने देखा कि वो आदमी हड़बड़ा गया और तुरंत पैंट ठीक कर खड़ा हो गया।
तभी सोनू और मैं अंदर घुसे और ये नाटक किया कि हमने कुछ देखा ही नहीं है।
उस आदमी की ज़िप अभी भी खुली थी।
सोनू ने कहा- अंकल, हम अभी ट्रेन से आए हैं और हमें लेने घर से लोग आ रहे हैं। बाहर ठंड थी तो सोचा कि यहां बैठ जाएं।
उस आदमी ने पहले तो गुस्से से हम दोनों को देखा फिर कुछ कहने लगा ही था कि उससे पहले मैंने कहा- प्लीज अंकल!
तो वह थोड़ा नर्म हुआ, उसने कहा- ठीक है, बैठ जाओ।
हम टेबल के सामने ही रखी कुर्सी पर बैठ गए और बैग को नीचे रख दिया।
थोड़ी देर हम सभी चुप रहे.
करीब 5 मिनट के बाद उसने पूछा- कहाँ जाना है तुम दोनों को?
सोनू ने गांव का नाम बताया।
उसने कहा कि वहां से आने में तो आधे घंटे से कम नहीं लगेगा और या उससे भी ज्यादा लग जाएगा।
तब मैंने घबराने का नाटक करते हुए कहा- तब तो हमें बहुत देर हो जाएगी।
तब उसने कहा- कोई बात नहीं, तब तक तुम दोनों यहीं बैठो।
मैंने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा- थैंक यू अंकल।
उसने पूछा- बेटा क्या नाम है तुम्हारा?
मैंने कहा- गीता अंकल।
मैंने देखा कि वह मुझसे बात करने में कुछ दिलचस्पी ले रहा था।
फिर मैंने जानबूझ कर बात को आगे बढ़ाया, कहा- यह मेरा छोटा भाई है सोनू!
तो उसने कहा- अच्छा तो तुम दोनों भाई-बहन हो।
इस पर सोनू ने हंसते हुए कहा- तो क्या अंकल आप हम दोनों को गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड समझ रहे हैं?
तो वह हंसने लगा और कहा- आजकल का क्या भरोसा है, लोग मौका पड़ने पर जीएफ को भी बहन बता देते हैं।
इस पर हम तीनों ही हंसने लगे.
सोनू ने पूछा- अंकल, आप क्या करते हैं यहां?
तो उसने कहा- मैं बाबू हूं.
मैंने कहा- आप रात में ड्यूटी करते हो क्या?
तो उसने कहा- हां कभी-कभी रात में ड्यूटी करता हूं।
सोनू ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा- आप अकेले बोर नहीं होते हो?
तब उसने कहा- नहीं … क्या करूं, नौकरी लेनी पड़ती है।
अचानक सोनू ने उसके सामने से वो किताब उठाते हुए कहा- ये कौन सी किताब है, देखूं तो!
इतने में अंकल हड़बड़ा गए.
मगर जब तक वो कुछ करते सोनू ने किताब उठा ली थी।
जैसे ही सोनू ने किताब खोली तो देखा कि अंदर नंगे लड़के और लड़कियों की चुदाई करते हुए फोटो थी।
सोनू ने किताब देखते हुए कहा- वाह अंकल, आप तो बड़ी अच्छी किताब पढ़ते हो।
मैंने देखा कि अंकल बुरी तरह शर्मा गए थे।
ऐसा लगा जैसे उनकी चोरी पकड़ ली गई हो।
सोनू जानबूझ कर बदमाशी कर रहा था।
इधर मैंने भी एक बार तो अंकल का लंड देखा.
अब अंकल किताब देख कर दोबारा गर्म होने लगे थे।
मैंने सोनू को हल्का सा डांटते हुए कहा- सोनू, अंकल की किताब वापस करो।
इस पर सोनू शरारत से आंख मारते हुए बोला- अंकल तो गुस्सा नहीं कर रहे, फिर तुम्हें क्यों गुस्सा आ रहा है दीदी?
फिर उसने पलट कर अंकल से कहा- अंकल, मैं थोड़ी देर देख लूं।
उन्होंने हंसते हुए कहा- अरे देख लो बेटा!
इस पर हम तीनों हंस दिये।
तभी सोनू ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा- अरे दीदी, तुम भी देख लो, मैं घर पर नहीं बताऊंगा।
यह कह कर किताब खोल कर उसने मुझे दे दी।
मैं हल्का सा शर्मा गई और सोनू को थप्पड़ मारते हुए कहा- सोनू, तुम बहुत बदतमीज होते जा रहे हो।
इस पर अंकल हंसते हुए मुझसे बोले- अरे देख लो बेटा, यही तो उमर है ये सब देखने की! और इतना अच्छा भाई कहां मिलेगा जो घर पर बताएगा भी नहीं।
अंकल अब एकदम खुलकर बात करने लगे थे।
मैंने गुस्साने का नाटक करते हुए किताब सोनू को देते हुए कहा- लो तुम देखो, मुझे नहीं देखना है।
जिस पर वो दोनों हंस दिये।
मैंने सोनू के लोअर का अगला हिस्सा उभरे हुए देख लिया था.
मैं समझ गई थी कि उसका लण्ड भी खड़ा हो रहा है।
उधर अंकल ने भी एक बार अपना हाथ नीचे ले जाकर अपने लण्ड को पैंट के उपर से एडजस्ट कर लिया।
इधर मेरी चूत भी गीली हो रही थी.
सोनू ने मुझे अपने लंड की तरफ देखते हुए देख लिया था और निगाहें मिलने पर हम दोनों मुस्कुरा दिये।
मैं एक बार फ़िर लंड देखना चाह रही थी.
मैं जान रही थी कि आज मुझे दो-दो लंड देखने का मौका है।
मगर कैसे देखूँ, ये समझ में नहीं आ रहा था।
हम लोगों को बात करते हुए 15 मिनट हो गए थे.
मैंने सोनू से कहा था कि मामा को फोन कर पूछो कि वे कब तक आएंगे क्योंकि मैं कन्फर्म करना चाहती थी कि उनको आने में कितना वक्त लगेगा।
सोनू ने फोन कर मामा से बात की।
फिर फोन रख कर मुझसे बोला- उन्हें आने में अभी आधे घंटे से ज्यादा लग जाएगा क्योंकि जिस बाइक से वे आ रहे थे, वो पंचर हो गई है। अब दूसरी बाइक लेकर आएंगे।
मुझे तो मानो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई हो।
मैं खुद भी यही चाह रही थी कि उन्हें आने में देर हो जाए।
उधर यह सुन कर अंकल और सोनू दोनों के चेहरे भी खिल गए।
यानि अब हम तीनों ही मजे लेना चाह रहे थे।
मगर मैंने मायूसी का नाटक करते हुए कहा- ओह, तब तो बहुत देर हो जाएगी।
इस पर अंकल बोले- कोई बात नहीं, तब तक आराम से यहां बैठो और बातें करो।
अब मेरे दिमाग में तेजी से सोच रहा था कि क्या करें.
अचानक मेरे दिमाग में एक आइडिया आया।
मैंने अंकल से पूछा- अंकल, यहां टॉयलेट किधर है, मुझे जाना है।
जबकि मुझे पता था कि वहां कोई टॉयलेट नहीं है।
अंकल बोले- बेटा, यहां तो कोई टॉयलेट नहीं है। तुम्हें बाहर कहेल में ही करना पड़ेगा।
मैंने नखरा दिखाते हुए कहा- ना बाबा ना … खुले में कैसे करूंगी।
इस पर सोनू ने कहा- क्या हुआ दीदी, बाहर अँधेरे में कर लो।
मैंने कहा- नहीं अँधेरे में कैसे अकेली जाऊँगी, मुझे डर लग रहा है।
तब अंकल ने कहा- कोई बात नहीं बेटा, हम लोग हैं ना. चलो हम तुम्हारे साथ बाहर चलते हैं।
इस पर सोनू ने कहा- क्यों नहीं, चलो हम भी साथ चल रहे हैं।
फिर हम तीनों बाहर आ गये.
बाहर एकदम गुप अँधेरा और सन्नाटा पसरा था।
मैंने कहा- आप दोनों यहीं रहियेगा, मैं आ रही हूं.
और फिर मैं बेंच की तरफ बढ़ गई क्योंकि बाहर लगे बल्ब की रोशनी बेंच जा रही थी।
जानबूझ कर मैं रोशनी में पेशाब करना चाह रही थी ताकि मैं इन्हें अपनी गांड का दिखा सकूं।
बेंच के पास पहुंच कर मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो दोनों खड़े मुझे देख रहे थे।
मैंने कहा- प्लीज़ जाइयेगा मत!
दोनों ने कहा- ठीक है।
फिर मैंने अपनी लेगिंग और पैंटी को नीचे तक खिसका दिया और कुर्ती को पीछे से पूरा कमर तक उठा दिया और जानबूझकर बैठने में थोड़ा टाइम लिया ताकि ये दोनों मेरी गोरी-गोरी गांड देख सकें।
और फिर धीरे से बैठ कर पेशाब करने लगी, साथ में मेरी नंगी गांड की नुमाइश करने लगी।
मेरे पेशाब करने में छरछराहट की आवाज भी रात के सन्नाटे में गूँज रही थी।
पेशाब करने के बाद मैं खड़ी हो गई और एक बार फिर लेगिंग ऊपर करने में थोड़ा समय लिया ताकि एक बार और सोनू और अंकल मेरी गांड देख सकें।
फिर से दोनों के पास वापस आयी।
मैंने देखा कि भाई का लंड नीचे के अंदर पूरा तरह खड़ा है।
उधर पैंट के ऊपर से साफ पता चल रहा था कि अंकल का लंड भी खड़ा है।
मैंने सोनू से कहा- तुम्हें भी पेशाब करना है तो कर लो।
इस पर सोनू ने मुस्कुराते हुए कहा- हां दीदी, तुम्हें पेशाब करती देख कर मुझे भी लग गई है।
कहकर वह भी उसी तरफ चला गया.
तब तक अंकल ने कहा- मुझे भी लगी है, मैं भी कर लेता हूं।
अंकल और सोनू पास ही खड़े होकर पेशाब करने लगे।
उन दोनों की पीठ मेरी तरफ थी।
पेशाब करने के बाद अंकल का लंड हिलाते हुए मेरी तरफ घूम गए और लंड को पैंट के अंदर करने की कोशिश करने लगे।
उनका लंड अभी पैंट के बाहर था ही और लगभग खड़ा था जिसे वे पैंट के अंदर डालने की कोशिश कर रहे थे।
मैं समझ गई थी कि वे जानबूझकर अपना लंड मुझे दिखा रहे हैं।
तो मैं भी आंखें फाड़े उनका लंड देख रही थी।
तभी सोनू भी पेशाब करके मुड़ा और उसने भी अपना लंड अंदर नहीं किया था।
मैंने देखा कि उसका लंड भी खड़ा था।
मगर सोनू का लंड अंकल के लंड जितना बड़ा नहीं था।
सोनू देख रहा था कि मैं आंखें फाड़े दोनों के लंड को देख रही हूं।
अंकल अपना लंड पैंट के अंदर डालने ही वाले थे कि सोनू ने कहा- क्या अंकल, आपका लंड कितना बड़ा है।
सोनू के मुँह से लंड शब्द सुन कर मैं हल्का मुस्कुरा दी।
उधर अंकल को तो जैसी इसी बात का इंतज़ार था, वे अपने लंड को पैंट के अंदर डालते-डालते रुक गए।
मैं समझ रही थी कि सोनू और अंकल दोनों अब खुलकर मजे लेना चाह रहे हैं।
रात के सन्नाटे में मेरी आंखों के सामने खड़े दो-दो लंड ने माहौल को सेक्सी बना दिया था।
मेरी चूत से भी पानी निकल कर मेरी पैंटी को हल्का-हल्का गीला कर रहा था इसलिए मैंने भी शर्म लाज छोड़ कर मजे लेने का मूड आ चुकी थी।
सोनू ने मुझसे कहा- दीदी, अंकल का लंड मेरे से बड़ा है ना?
मैंने हंसते हुए कहा- तू अभी छोटा भी है और अंकल तुझसे उम्र में बड़े हैं तो उसका लंड तो तेरे से बड़ा ही होगा।
अब मेरी आंखों के सामने दो-दो खड़े लंड थे जिनमें एक मेरे भाई का था और दूसरा एक अंजान आदमी का।
मेरे ऊपर चुदाई का ऐसा नशा सवार था कि मैं अब कुछ भी करने को तैयार थी।
उधर दोनों लंड भी मुझे चोदने को बेताब हो रहे थे.
अचानक सोनू ने अंकल का लंड अपने हाथ में पकड़ लिया और बोला- बाप रे अंकल, आपका लंड कितना गर्म है।
अब तक अंकल का लंड पूरा तरह खड़ा हो चुका था।
उनका लंड करीब सात इंच का रहा होगा।
मैं भी लंड को अपने हाथ में लेना चाह रही थी.
तभी सोनू ने मुझसे कहा- दीदी, तुम छू कर देखो, कितना गर्म है।
मैंने मुस्कुरा कर कहा- चलो ठीक है, मान गयी. वैसे तुम्हारा लंड भी तो गर्म होगा।
इस पर अंकल और मैं दोनों हंसने लगे।
अंकल ने मुझसे कहा- चलो बेटा, तुम्हीं हम दोनों का लंड छूकर बताओ कि किसका ज्यादा गर्म है।
तब सोनू बोला- हाँ दीदी, तुम छूकर देखो।
यह कहकर वे दोनों उसी तरह अपने लण्ड को हाथ से पकड़े मेरे पास आकर खड़े हो गये।
मैं तो यही चाह ही रही थी.
मैंने धीरे से हाथ बढ़ाया कर सबसे पहले सोनू के लंड को अपने हाथ से पकड़ा।
मेरे पकड़ते ही सोनू का लंड हल्के-हल्के झटके लेने लगा।
तभी अंकल ने कहा- बेटा, एक बार मेरा भी पकड़ो।
मैंने दूसरे हाथ से उनका लंड पकड़ लिया।
अब मेरे दोनों हाथों में लंड था.
मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि अभी कुछ देर पहले कहाँ मैं बस एक बार लंड देखने के लिए तरस रही थी, वहीं अब दो-दो लंड को अपने हाथों में पकड़ रखा है।
अंकल ने कहा- बेटी, इसे थोड़ा हिलाओ, मजा आएगा।
मैं धीरे-धीरे हाथों से दोनों लंड को हिलाने लगी और हल्का-हल्का मुठ मारने लगी।
मेरे हाथ से पकड़ते ही दोनों के दोनों लंड एकदम खड़े और लोहे की रॉड जैसी टाइट हो गये।
दोनों लंड का गुलाबी सुपारा देख कर मेरे मुँह में पानी आ रहा था।
मेरा मन कर रहा था कि मैं झुक कर लंड को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दूँ।
मगर मैं किसी तरह खुद को काबू में कर दोनों लंड धीरे-धीरे हिला रही थी।
तभी सोनू ने कहा- दीदी बारी-बारी से करो, तो मजा आएगा।
अंकल- हां बेटा, सोनू सही कह रहा है. बारी-बारी से हम दोनों का हिलाओ तो ज्यादा मजा आएगा।
मैं मुस्कुराती हुई- ठीक है। तो पहले किसका करूं?
सोनू- दीदी, पहले मेरा प्लीज.
जिस पर मैं मुस्कुराती हुई सोनू के लंड को एक हाथ से पकड़ कर उसके लंड की स्किन को आगे पीछे कर मुठ मारने लगी।
तब तक अंकल खुद ही अपने हाथ से अपना लंड पकड़ कर धीरे धीरे हिला रहे थे।
अचानक उन्होंने अपना एक हाथ मेरे जैकेट के ऊपर से ही चूचियों पर रख दिया और हल्का-हल्का दबाने लगे।
उधर मैं अपने हाथ की स्पीड बढ़ाती जा रही थी।
सोनू ने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रख दिया और हल्का-हल्का अपने कमर को हिला कर साथ दे रहा था।
इधर अंकल ने मेरी जैकेट की चेन खोल दी और अब मेरी कुर्ती के बटन भी खोलने लगे। मैंने ब्रा नहीं पहनी थी इसलिये कुर्ती के बटन खोलते ही मेरी दोनों बड़ी-बड़ी गोल चूचियां आजाद हो गई। अब अंकल एक हाथ से अपना लंड हिला रहे थे और दूसरे हाथ से मेरी चूचियों को दबा रहे थे। उधर सोनू ने भी अपने एक हाथ से मेरी चूची को दबाना शुरू कर दिया। तभी अंकल हल्के से झुके और अपने मुँह में मेरी चूची से लगा दिया और निप्पल को मुँह में लेकर चूसने लगे। मैं तो जैसे आनंद के सागर में गोते लगा रही थी। तभी सोनू ने कहा- दीदी थोड़ा तेज-तेज करो।
ये कहते वक्त सोनू की आवाज हल्की-हल्की लड़खड़ा रही थी और उसने अपनी आंख बंद कर रखी थी। मैं समझ गई कि सोनू झड़ने वाला है.
तो मैंने भी अपने हाथों की स्पीड दुगुनी कर दी और जोर-जोर से उसका लंड हिलाने लगी। अचानक सोनू का शरीर झटके लेने लगा। उसने काँपती आवाज़ से कहा- दीदी इइइ इइइ इइआआ आआआ … बस्स… आआ आआह … थोडाआआ … तेज … आआआ आआआ! अचानक उसकी कमर तेजी से झटके लेने लगी.
उसके लंड से गाढ़ा-गाढ़ा वीर्य निकलने लगा जो मेरी हथेलियों पर फैल हो गया। सोनू की आंखें अभी भी बंद थीं और वह हांफ रहा था। मेरे भाई सोनू के झड़ते ही अंकल ने मेरी चूचियों से अपना मुंह हटाया और बोले- बेटा, अब मेरा भी हिलाओ। मेरी हथेलियों में सोनू का वीर्य लगा हुआ था. मैंने उन्हें साफ किये बिना ही उसके हाथ से अंकल के लंड को पकड़ लिया और उनके लंड पर वो वीर्य लगा कर उनके लंड को एकदम गीला कर दिया और धीरे उनकी मुठ मारने लगी। अंकल एक हाथ से मेरी चूचियों को दबा भी रहे थे। इधर सोनू भी अब थोड़ा नॉर्मल हो गया और उसने रुमाल से अपने लंड को थोड़ा साफ किया और फिर मुझे अंकल का लंड पकड़ कर मुठ मारते देखने लगा।
फिर उसने भी मेरी चूची को पहले दबाया और फिर झुक कर चूची को चूसने लगा। थोड़ी देर तक चूची चूसने के बाद सोनू ने चूची को चूसना छोड़ दिया और घुटनों के बल मेरे ठीक सामने बैठ गया। बैठने के बाद वह मेरी लेगिंग को नीचे खिसकाने लगा। मैंने भी हल्का सा सीधी होकर एक हाथ से लेगिंग को एक तरफ से खिसका कर उसकी मदद की।
जिस पर सोनू ने लेगिंग को खिसका कर घुटनों से भी नीचे तक कर दिया. लेगिंग टाइट होने की वजह से पैंटी भी उसी के साथ खिसक कर उतर गई थी। अब मेरी चूची और चूत दोनों नंगे हो चुके थे।
सोनू ने थोड़ी देर मेरी चूत को गौर से देखा, फिर धीरे से अपना मुंह मेरी चूत के पास लाकर पहले तो चूत की खुशबू को सूंघा। फिर उसने अपने दोनों हाथों को मेरी चूत पर रखा और अपने मुँह को मेरी चूत से लगा दिया और जीभ से चूत को चाटने लगा।
जैसे ही सोनू ने अपनी जीभ मेरी चूत पर फेरी मेरे मुंह से हल्की सी सिसकारी निकल गई। मैंने भी अपनी जांघों को हल्का सा फैला कर सोनू को चूत चाटने की पूरी जगह दी और उसके सिर पर अपने एक हाथ धीरे से अपनी चूत पर और दबा दिया।
सोनू ने चूत चाटते चाटते अचानक अपनी जीभ मेरी चूत में डाल दी.
मेरे मुँह से एक बार फिर हल्की सी सिसकारी निकल गई।
अब मैं भी हल्का-हल्का अपने काम को हिलाने लगी। इधर अंकल भी शायद झड़ने वाले थे, वे भी आंख बंद कर धीरे-धीरे बड़बड़ाने लगे- आआ आहाआ औउउउर जोर से … बेटाआआ … हाआं … बाअस्स्स … हाआ … और तेईईईई ईईईईई … मैं भी तेजी से उनका लंड हिलाने लगी. अंकल के मुंह से हल्की सी सिसकारी निकली- हांआं … बस … बेटाआआ … बस्स्स स्स्स्स्स! और वे तेजी से झटके लेते हुए झड़ने लगे. उनके लंड का रस निकल कर मेरे हाथ पर फैल गया।
इधर सोनू मेरी चूत को जीभ को तेजी से चाट रहा था और बीच-बीच में चूत के अंदर जीभ डाल देता था। वही अंकल थोड़ा नॉर्मल होने के बाद झुक कर मेरी चूचियों को चूसने लगे। मेरी हालत ख़राब हो रही थी.
मैंने अपने एक हाथ से सोनू के सिर के बालों को भींच लिया और अपने कमर को तेजी से हिलाने लगी और दूसरे हाथ से अंकल के सर को पकड़ कर अपनी चूचियों पर दबा दिया था।
मैं भी झड़ने ही वाली थी, मेरे मुँह से तेज सिसकारी निकल रही थी- आआआ आहाआ सोनू … आआ आहाआ औउउर तेज चाट … आआ ऊऊऊ माआआ … आआहा आ!
मैंने इतने जोर से सोनू का सर अपनी चूत पर दबाया जैसे मैं उसके पूरे सर को ही अपनी चूत में डाल लूंगी.
और बस मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया।
मैं तेजी से हांफ रही थी और अपने सांसों को काबू में करने की कोशिश कर रही थी.
सोनू ने मेरी चूत का सारा रस पी लिया था।
उधर अंकल मेरी दोनों चूचियों को बारी-बारी से चूस रहे थे।
मैंने अभी भी अपनी आंखें बंद कर रखी थी।
जब मैंने आंख खोल कर देखा तो सोनू अपने मुंह पर लगे मेरी चूत के रस को रूमाल से साफ कर खड़ा हो रहा था।
मेरी नज़र उसका लंड पर गयी।
मैंने देखा कि उसके लंड में फिर से तनाव आने लगा था।
मैं आंखें बंद कर उसी तरह खड़ी रही और अंकल जो मेरी चूचियों को चूस रहे थे उनके सर पर धीरे-धीरे हाथ फेरने लगी।
तभी सोनू ने भी मेरी दूसरी चूची को चूसना शुरू कर दिया।
मैं दूसरा हाथ सोनू के सिर पर फेरने लगी।
मैं अभी भी नीचे से पूरी नंगी खड़ी थी और मेरा भाई और अंकल दोनों एक साथ मेरी दोनों चूचियों को चूस रहे थे।
जाड़े की रात में भयंकर ठंड और कोहरे के बीच खुले आसमान के नीचे जवानी का यह खेल चल रहा था।
दूर कहीं कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज से रात का सन्नाटा टूट रहा था।
हम तीनों ही करीब-करीब नंगे थे मगर ठंड का एहसास तक किसी को नहीं हो रहा था।
करीब 5 मिनट तक सोनू और अंकल मेरी चूचियों को चूसते रहेंगे।
उसके बाद अंकल ने अपना मुंह मेरी चूचियों से हटा दिया।
मैंने आंख खोल कर देखा तो वे हाथ से अपने लंड को हिला रहे थे, उनके लंड में भी तनाव आ चुका था।
मेरी निगाह उनके लंड पर ही थी मेरे मुँह में फिर पानी आ गया।
अंकल ने मुझे देखा और एक हाथ से अपने लंड की त्वचा को पूरा पीछे खींचा, दूसरे हाथ को लंड के सुपारे पर फेरते हुए मुझसे कहा- बेटा, एक बार इसे चूसो।
सोनू ने भी चूचियों से मुंह हटाया और सीधा खड़ा हो गया वो भी अपने एक हाथ से अपना लंड धीरे हिला रहा था।
उसका लंड भी आधा खड़ा हो चुका था।
मतलब साफ़ था हम तीनों एक बार फिर जवानी के खेल के लिए तैयार हो गए थे।
अंकल ने फिर अपने लंड को हिलाया और मेरे सर पर हाथ रख कर नीचे झुकाने की कोशिश करते हुए बोले- चूसो बेटा!
लंड देख कर तो मेरे मुँह में शुरू से ही पानी आ रहा था।
वहीं सोनू भी अपने लंड की त्वचा को पीछे खींच कर अपने सुपारे पर हाथ फेर रहा था।
मैं समझ गई कि वह भी चाह रहा है कि मैं उसका लंड चूसूं।
मैंने झुक कर अपना मुंह खोला और अंकल के लंड को अपने होठों के बीच रखा लिया।
अंकल बोले- हां बेटा … शाबाश!
यह कहकर अपने कमर को हल्का-हल्का हिलाकर मेरे मुंह को ही चोदने लगे और एक हाथ से मेरी चूचियों को भी दबाते जा रहे थे।
पहले तो मुझे लंड का स्वाद बड़ा अजीब लगा मगर थोड़ी ही देर में मुझे लंड चूसने में मजा आने लगा।
अंकल के लंड से थोड़ा सा वीर्य निकल आया था जिसका नमकीन स्वाद मुझे अच्छा लग रहा था और मेरे मुँह को आगे पीछे कर के लॉलीपॉप की तरह अंकल के लंड को चूसने लगी।
उधर सोनू भी अपना लंड हाथ में पकड़ कर एकदम सामने ही खड़ा था।
मैंने एक हाथ सोनू का लंड पकड़ लिया और उसे हल्का-हल्का हिलाने लगी।
सोनू ने अपना लंड एकदम मेरे मुँह के पास ला दिया।
मैं थोड़ी देर तक अंकल का लंड चूसती रही.
फिर मैंने अंकल का लंड छोड़ कर सोनू के लंड को अपने मुंह में ले लिया और उसे चूसने लगी।
सोनू ने भी अपने कमर को हिलाना शुरू कर दिया और अपने लंड को मेरे मुँह में आगे पीछे करने लगा।
इसी तरह मैं सोनू और अंकल के लंड को बारी-बारी से चूसने लगी।
थोड़ी देर में ही सोनू का लंड दोबारा खड़ा हो गया।
जब मैं अंकल का लंड चूस रही थी तो सोनू मेरे पीछे चला गया।
पीछे जाकर सोनू ने अपने हाथों से मेरी गांड को सहलाने लगा और फिर धीरे से मेरी गांड के दरार को फैला कर अपने लंड को मेरी गांड और चूत से रगड़ने लगा।
इधर मैं अंकल का लंड मुंह में लेकर बड़े मजे से चूस रही थी।
उधर सोनू अपने लंड के गर्म-गर्म सुपारे को मेरी चूत और गांड से रगड़ रहा था।
रगड़ने से मेरी चूत एकदम गीली हो गई थी।
लंड को चूत और गांड से रगड़ते-रगड़ते अचानक सोनू ने अपने लंड को मेरी चूत पर रखा और अपने हाथों से मेरी कमर को पकड़ कर जोर से धक्का मारा।
एक ही धक्के में उसका गर्म गर्म लंड पूरा का पूरा मेरी चूत में घुस गया।
मेरे मुँह से हल्की सी सिसकारी निकल गयी।
हालांकि मैंने इसके पहले काई बार अपनी चूत में बैगन और मूली डाली थी मगर लंड का मजा अलग ही आ रहा था।
सोनू ने अब धीरे-धीरे अपने कमर से धक्के मारना शुरू कर दिया।
इधर मैंने अंकल का लंड चूस-चूस कर लाल कर दिया।
अब आगे मेरे मुँह में अंकल का लंड था और पीछे मेरी चूत में मेरे भाई का लंड घुसा हुआ था।
सोनू धक्के पर धक्का मारे जा रहा था।
मैं भी गांड उछाल-उछाल कर उसका साथ दे रही थी।
करीब 10 मिनट तक ऐसा ही चलता रहा।
10 मिनट बाद सोनू ने अचानक धक्के की स्पीड बढ़ा दी और तेज-तेज धक्के मारता हुआ मेरी चूत में झड़ गया।
मगर मैं अभी भी नहीं झड़ी थी।
सोनू थोड़ी देर तक अपना लंड मेरी चूत में डाले ही हांफ रहा था।
थोड़ी देर बाद उसने अपना लंड मेरी चूत से निकाला और वही बेंच पर बैठ गया। उसकी आंखें बंद थी और वह अपनी सांसों को काबू में करने की कोशिश कर रहा था. उसका लंड एकदम सिकुड़ कर लटका हुआ था।
इधर मैं अंकल का लंड अभी भी चूस रही थी. लेकिन मेरी चूत की आग अभी ठंडी नहीं हुई थी। तभी अंकल ने अपना लंड मेरे मुँह से निकाला और वे भी मेरे पीछे चले गये।
मैं समझ गई कि अब इस ओपन चुदाई से मेरी चूत की आग बुझेगी। मैंने भी बेंच का सहारा लिया और अपने कूल्हों को हल्का सा फैला कर और गांड को उठा कर खड़ी हो गई तकी अंकल के लंड को मेरी चूत तक पहुंचने में कोई दिक्कत ना हो। मेरी चूत सोनू के वीर्य से एकदम गीली हो चुकी थी। अंकल ने अपने लंड का सुपारा मेरी चूत पर रखकर मेरे कमर को दोनों हाथों से पकड़ लिया और एक जोरदार धक्का मारा और उनका लंड मेरी चूत में पूरा का पूरा घुस गया।
मेरे मुँह से हल्की से सिसकारी निकल गयी। अंकल का लंड सोनू के लंड से मोटा और बड़ा दोनों था इसलिए मुझे दर्द होने लगा था। अंकल लंड डालने के बाद थोड़ी देर तक रुके रहे। फिर वे मुझसे बोले- बस बेटा, अब दर्द नहीं करेगा। मैं भी शांत खड़ी रह कर अपने दर्द को काबू में करने की कोशिश कर रही थी।
थोड़ी देर बाद मुझे हल्का सा आराम मिला। तभी अंकल ने भी अपने कमर से हल्के-हल्के धक्के मार कर मुझे चोदना शुरू किया। मुझे अभी भी दर्द हो रहा था मगर वो दर्द बड़ा मीठा-मीठा था। और अब मैं भी गांड हिला-हिला कर चुदाई में अंकल का साथ देने लगी। करीब 5 मिनट की चुदाई में ही मेरी हालत खराब होने लगी और मेरी तेजी से अपनी कमर हिलाती हुई झड़ गई. उधर अंकल भी तेजी से धक्के मारते हुए मेरी चूत में झड़ गए। हम दोनों लगभाग साथ ही झड़े। थोड़ी देर तक अंकल मेरी चूत में लंड डाल कर खड़े रहे और मैं भी उसी तरह खड़ी रही.
हम दोनों अपनी सांसों को काबू में कर रहे थे।
फिर अंकल ने अपना लंड मेरी चूत से निकाला और मैं भी सीधी खड़ी हो गई। खड़ी होने पर मेरी चूत से अंकल और सोनू का वीर्य निकल का मेरी जांघ पर बहने लगा।
मैंने अपने रूमाल से साफ किया और फिर अपनी चूत को भी साफ कर लेगिंग को ऊपर खींच कर पहन लिया और अपनी कुर्ती के बटन को बंद कर जैकेट को पहन लिया। उधर सोनू और अंकल भी अपने कपड़े ठीक कर चुके थे। उसके बाद हम तीनों ऑफिस में आ गए।
करीब 5 मिनट बाद ही बाइक की आवाज आने लगी. हम समझ गए कि मामा आ गए हैं। जिसके बाद मैं और सोनू अपना बैग लेकर ऑफिस से बाहर आ गए।
निकलते वक्त हमने पलट कर देखा तो अंकल कुर्सी पर अपना सर रख कर आंख बंद किये हुए थे। मामा के आते ही मैं और सोनू बाइक पर बैठ कर घर की तरफ चल दिये। रास्ते में मेरे और सोनू के बीच कुछ बात नहीं हुई। जब हम घर पहुंचे तो सब हमारा इंतजार कर रहे थे।
मम्मी ने हमसे पूछा- इतनी देर तक स्टेशन पर रुकना पड़ा, कोई परेशानी तो नहीं हुई? सवाल सुनकर मैं और सोनू ने एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुरा दिये।
शेष अगले भाग में
